मिट्टी में पलने वाले , मिट्टी में ही घुलने वाले, काली -स्याह अंतर्मन रख , चका -चौंध में जीने वाले .. नरम , सौंधी खुशबू वाली, मिट्टी को ही धुलते हैं । ये धरा है , वसुंधरा है , सबको सबकुछ देती है जब थक जाये , बोझ उठाये , जीवन पे मिटने वाले , अंत कब्र हो , या जली चिता हो , मिट्टी में ही ढलते हैं -- अखिल
वो पूरब में तेरा बिरादर है, वो जो खाता चमगादड़ है उसकी लाठी और भैंस हो तुम वो तुम सबका ही फादर है जो छली है आतुर और कादर है तेरे मन में क्यूं उसका आदर है? वो विस्तारवादी और गुलाम हो तुम उसकी रक्त से रंजीत चादर है बिल्ली, कुत्ते, गधे, घोड़े किस नस्ल को खाए? किसे छोड़े? वो मनुष्य भी तो खा जाता है निर्लज्ज ना कभी लजाता है तुम गिद्ध हो पलते लाशों पे तुम प्राणी हो दुर्जन योनि के बामपंथी अभिशाप हो तुम हो माओ, मार्क्स या लेनिन के उसकी डुगडुगी बजाते हो बेशर्म हो ना शर्माते हो लाखों को लील गया जो खल तुम गीत उसी के गाते हो बिकते हो तुम नोटों में, पर क्रान्ति क्रान्ति चिल्लाते हो अर्धसत्य का ढोल पीट पीट, बस भ्रांति भ्रांति फैलाते हो वो जो तेरा बिरादर है, वो जो खाता चमगादड़ है वो जो छली, आतुर और कादर है वो ही तुम सबका फादर है "अखिल"
कुछ डरपोक हैं, गजब के डरपोक हैं डर गए तलवार से तो धर्म छोड़ दी। डर गए अपनो से तो देश तोड़ दी। डर गए शिक्षा से तो बम फोड़ दी। डर गए न्याय से तो कानून मड़ोड दी। कुछ डरपोक हैं, बेशर्म डरपोक हैं डर गए कार्टून से तो गोली चला दी। डर गए भक्तों से तो ट्रेन जला दी। डर गए संस्कृति से तो नींव हिला दी। डर गए रोग से तो जूठन खिला दी। कुछ डरपोक हैं, ढीठ डरपोक हैं डर गए लड़की से तो तेज़ाब फेंक दी। डर गए सतायों से तो सड़क छेक दी। डर गए जीवाणु से तो थूक, छींक दी। डर गए डॉक्टरों से तो उन्हें पीट दी। कुछ डरपोक हैं, मगर कैसे डरपोक हैं?
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