Posts

Showing posts from January, 2015
हरी  पत्तियां हैं  अनमोल , ये  हरी  पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये  हरी  पत्तियां  , भाई  बिछड़े , यार  भी  बिछड़े , और  बिछड़ा  वो  माँ  का  आँचल , बिछड़  गए  सब , बस  ना  बिछड़े , चपल , चितचोर , ये  हरी  पत्तियां चैन  कहाँ  है , ख़ुशी  कहाँ  है , होटों  पे  वो  हंसी  कहाँ  है , जब  देखो  बस  इसकी  धुन  है , मदमाती  ये  हरी  पत्तियां गुणी  बना  दे , धुनि  बना  दे , कइयों  को  ये  खुदा  बना  दे , पीर  भुला  दे , खुशी  भुला  दे , हैं  दमदार  ये  हरी  पत्तियां  हैं  अनमोल , ये  हरी  पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये  हरी  पत्तियां -- अखिल

मिट्टी

मिट्टी में पलने वाले , मिट्टी में ही घुलने वाले, काली -स्याह अंतर्मन रख , चका -चौंध में जीने वाले .. नरम , सौंधी खुशबू वाली, मिट्टी को ही धुलते हैं । ये धरा है , वसुंधरा है , सबको सबकुछ देती है जब थक जाये , बोझ उठाये , जीवन पे मिटने वाले , अंत कब्र हो , या जली चिता हो , मिट्टी में ही ढलते हैं  -- अखिल 
घर  वापसी हर  शाम , परिंदों  के  काफिलों  को  वापस  जाता  देख , बेबस  मंन, अक्सर  ये  सोचता  है , "घर  वापसी " ऐसी  हो -- अखिल
चेहरों पे चेहरे चेहरों  पे  लगे  चेहरे , कुछ  दर्द  छुपाने  को , कुछ  ज़र्द  छुपाने  को -- अखिल