हठ .... वो ज़हर ही जीवन है , जो स्याह काली सी है ना कहो कोई उसको , वो हस्ती अपनी मिटा डाले अंदर जो जलती है , वो रौशन ही तो करती है , उस जलते हुए दिल से , कई दिए जला डालो आग समंदर की , ना दिखे तो बेहतर है , सूरज ना सर्द पड़े , ये भी तो ज़रूरी है , ऊपर से समंदर सी तुम चादर ओढ़ के ही , अंदर के शोलों को सूरज सा बना डालो अखिल
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