हर शाम ,
परिंदों के काफिलों को वापस जाता देख ,
बेबस मंन, अक्सर ये सोचता है ,
"घर वापसी " ऐसी हो
-- अखिल
Get link
Facebook
X
Pinterest
Email
Other Apps
Comments
Popular posts from this blog
हरी पत्तियां हैं अनमोल , ये हरी पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये हरी पत्तियां , भाई बिछड़े , यार भी बिछड़े , और बिछड़ा वो माँ का आँचल , बिछड़ गए सब , बस ना बिछड़े , चपल , चितचोर , ये हरी पत्तियां चैन कहाँ है , ख़ुशी कहाँ है , होटों पे वो हंसी कहाँ है , जब देखो बस इसकी धुन है , मदमाती ये हरी पत्तियां गुणी बना दे , धुनि बना दे , कइयों को ये खुदा बना दे , पीर भुला दे , खुशी भुला दे , हैं दमदार ये हरी पत्तियां हैं अनमोल , ये हरी पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये हरी पत्तियां -- अखिल
वो पूरब में तेरा बिरादर है, वो जो खाता चमगादड़ है उसकी लाठी और भैंस हो तुम वो तुम सबका ही फादर है जो छली है आतुर और कादर है तेरे मन में क्यूं उसका आदर है? वो विस्तारवादी और गुलाम हो तुम उसकी रक्त से रंजीत चादर है बिल्ली, कुत्ते, गधे, घोड़े किस नस्ल को खाए? किसे छोड़े? वो मनुष्य भी तो खा जाता है निर्लज्ज ना कभी लजाता है तुम गिद्ध हो पलते लाशों पे तुम प्राणी हो दुर्जन योनि के बामपंथी अभिशाप हो तुम हो माओ, मार्क्स या लेनिन के उसकी डुगडुगी बजाते हो बेशर्म हो ना शर्माते हो लाखों को लील गया जो खल तुम गीत उसी के गाते हो बिकते हो तुम नोटों में, पर क्रान्ति क्रान्ति चिल्लाते हो अर्धसत्य का ढोल पीट पीट, बस भ्रांति भ्रांति फैलाते हो वो जो तेरा बिरादर है, वो जो खाता चमगादड़ है वो जो छली, आतुर और कादर है वो ही तुम सबका फादर है "अखिल"
सरकारों से भी क्या माहौल बदलती हैं, नहीं सरकारों से बस सरोकार बदलते हैं गंगा-जमुनी तहज़ीब बस मेरी बातों में है वरना नफरत बटंती यहाँ खैरातों में है "इनटोलेरेन्स" मेरा है जो मैं तुमपर थोपता हूँ, गुनाह मेरा है , जो मैं तुमपर थोपता हूँ। तुमने वर्षों भोगा है जिस नफरत को, हमने तोड़ा है तेरे घर को जिस गफलत से, उनका नीर निचोड़ जहर एक मकसद से, उनकी सारी जिम्मेदारी, मैं तुमपर थोपता हूं। "अखिल"
Comments
Post a Comment