#Sandesh2Soldiers

#Sandesh2Soldiers

हम घरों में दिए जलाते हैं, खुशियां भरपूर मानते हैं
घर से विरह की टीस लिए, वो सरहदों पे दीप जलाते हैं
लड़ी, पटाखों, फुलझड़ियों से बस एक दिवाली मानते हम
वो बारूदों की होली से नित-दिवस दिवाली मानते हैं

हाथों में हथियार हैं उनके, फिर भी हम पत्थर बरसाते उनपर
शालीनता की हद्द तोड़ हम, उनपर आरोप लगाते हैं
उनमें है नर संहार की क्षमता, वज्र सामान प्रहार की क्षमता
बाँध स्वयं को धीरज से, वो बस अपनों का वार बचाते हैं

मानवाधिकार अधिकार है उसका, जो पहले बस एक मानव हो
मानवाधिकार के खेल में हम, पक्ष लेते हैं दानव का
हम न्याय दिलाने चलते हैं, मानवता के अपराधी को
ध्यान हमें नहीं आता, कटा सर सीमा पर एक सिपाही का

हैं वो भी चिराग घरों के अपने, संतानें अपनी माँओं के,
बुझा चिराग अपने घर का, वो अनगिनत घर रोशन कर जाते हैं
हाँ वो माँओं को छोड़कर, देश का आँचल थामे हैं
वो अपने लहू की देकर आहुति, ऋण जन्मभूमि की चुकाते हैं

"अखिल"


Comments

Popular posts from this blog

बामपंथी पत्रकार और चीन

गुनाह मेरा है , वो गुनाह मैं तुमपर थोपता हूँ