हरी पत्तियां हैं अनमोल , ये हरी पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये हरी पत्तियां , भाई बिछड़े , यार भी बिछड़े , और बिछड़ा वो माँ का आँचल , बिछड़ गए सब , बस ना बिछड़े , चपल , चितचोर , ये हरी पत्तियां चैन कहाँ है , ख़ुशी कहाँ है , होटों पे वो हंसी कहाँ है , जब देखो बस इसकी धुन है , मदमाती ये हरी पत्तियां गुणी बना दे , धुनि बना दे , कइयों को ये खुदा बना दे , पीर भुला दे , खुशी भुला दे , हैं दमदार ये हरी पत्तियां हैं अनमोल , ये हरी पत्तियां , कड़क , चौकोर , ये हरी पत्तियां -- अखिल
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मिट्टी
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मिट्टी में पलने वाले , मिट्टी में ही घुलने वाले, काली -स्याह अंतर्मन रख , चका -चौंध में जीने वाले .. नरम , सौंधी खुशबू वाली, मिट्टी को ही धुलते हैं । ये धरा है , वसुंधरा है , सबको सबकुछ देती है जब थक जाये , बोझ उठाये , जीवन पे मिटने वाले , अंत कब्र हो , या जली चिता हो , मिट्टी में ही ढलते हैं -- अखिल