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Showing posts from March, 2020

तृतीय विश्व युद्ध

मानवता का शत्रु दानव जीत रहा है सारे जग को, अमर्यादित शत्रु है, लील रहा है सारे जग को रक्तबीज सा मायावी है पल पल संख्या बढ़ती जाए ढीठ, ढोंगी आघाती है दिवसों दिवस रहे खुद को छुपाए शक्तिशाली देश गिरे हैं, गिरे पड़े हैं उनकी सेना गिरा मनोबल, हारा जीवन, चन्द्र विहीन है लंबी रैना। दरवाजे पर भारत के भी आन पड़ा है घातक दानव अदृश्य, अस्पृश्य, इस दानव से लड़ने में अक्षम है मानव विश्व विजयी के बढ़ते पग को भारत भूमि ने रोका था सिकंदर जैसे नायक को भी पग पग पर हमने टोका था तब बस एक पुरू था रण में दृढ़संकल्प मगर थी मन में विश्व विजयी के रथ को रोका भर शौर्य, प्रताप अपने उद्यम में आज वसुंधरा के बच्चों को फिर से एक ललकार मिली है मानवता के रक्षक बनने की हमको एक पुकार मिली है आज असंख्य पुरू चाहिए लड़ने घर आए दानव से हारेगी मानवता इस रण में जो दूर ना हो मानव मानव से अपनो से दूरी रखना है शत्रु विचित्र है, प्रीति बदले घर रहकर हम लड़ें युद्ध ये ये युद्ध विचित्र है, नीति बदले ये विश्व युद्ध है, सारे भागी ये कर्म यु

गुनाह मेरा है , वो गुनाह मैं तुमपर थोपता हूँ

सरकारों से भी क्या माहौल बदलती हैं, नहीं सरकारों से बस सरोकार बदलते हैं गंगा-जमुनी तहज़ीब बस मेरी बातों में है वरना नफरत बटंती यहाँ खैरातों में है "इनटोलेरेन्स" मेरा है जो मैं तुमपर थोपता हूँ, गुनाह मेरा है , जो मैं तुमपर थोपता हूँ। तुमने वर्षों भोगा है जिस नफरत को, हमने तोड़ा है तेरे घर को जिस गफलत से, उनका नीर निचोड़ जहर एक मकसद से, उनकी सारी जिम्मेदारी, मैं तुमपर थोपता हूं। "अखिल"