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खो रहा भगवान है

उसको ही बचाने की वो करते पुकार हैं, जिसको कि कहते हैं सर्व-शक्तिमान है आस्था के खेल में, स्वार्थियों की भीड़ में, पंथों के जूनून में, खो रहा भगवान है आस्था के मंदिर बने हुए हैं शक्ति केंद्र, निर्लज्जता से होता वैभव का सम्मान है वैभव और ऐश्वर्य में, मठों, मंदिरों के गर्भ में, भौतिकों के गर्त में, खो रहा भगवान है साधुओं का वेश है, पर स्वार्थी उद्द्येश्य है, स्याह आत्मा पे ओढ़े गेरुआ परिधान है ना शांत चित्त बुद्ध है, ना ज्ञानी वर्धमान है, गुरुओं के आसनों पे, जाने कौन विद्यमान हैं अहंकारी हैं देवता, असुरों सी क्रूरता, ना रहमति रहीम है, ना दयालु राम है मूर्छित निष्ठा है,  बिखरा विश्वास है, कुंठित आत्मा में खो रहा भगवान है "अखिल"